बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पीएम मोदी
दामोदर को ‘बंगाल का शोक’ के नाम से जाना जाता रहा है क्योंकि इस नदी के कारण पश्चिम बंगाल को हर साल भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ता है. जिस साल भी भारी बारिश होती है पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं.
बाढ़ के कारण पहले अविभाजित बिहार और बाद में झारखंड और पश्चिम बगाल के बीच रिश्तों में खटास आ जाती है. हालिया घटनाक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल की तरफ़ ज़्यादा पानी छोड़े जाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो चिट्ठियां लिखी हैं.
लेकिन केंद्र की तरफ़ से कहा गया है कि ज़्यादा पानी पश्चिम बंगाल सरकार को भरोसे में रखकर छोड़ा गया था.
दामोदर नदी झारखंड के छोटानागपुर के पठारी इलाक़े ‘खमरपट’ से निकलती है. यह नदी झारखंड और पश्चिम बंगाल में 592 किलोमीटर का सफ़र करने के बाद पश्चिम बंगाल की हुगली नदी में समा जाती है. दामोदर की सहायक नदियाँ में बराकर भी शामिल है.
बाढ़ से निपटने के लिए अब तक क्या प्रयास हुए
दामोदर नदी से पैदा हुए बाढ़ से निपटने के प्रयास बहुत पहले शुरू हो गए थे. लेकिन आज़ाद भारत में इसके लिए पहली कोशिश साल 1948 में की गई, जब 7 जुलाई को संविधान सभा ने अधिनियम बनाया और दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) का गठन हुआ.
ये देश की अपनी तरह की पहली ‘बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना’ थी.
लेकिन इस नदी पर बांध बनने का सिलसिला साल 1953 से शुरू हुआ और पहला बाँध तिलैया में बनाया गया. फिर दूसरा बांध साल 1955 में कोनार में बना. इसके बाद मैथन डैम और पंचेत बाँध भी बने. ये सभी बांध बाढ़ के प्रकोप को कम करने के लिए बनाए गए थे.
इन सभी बांधों पर दामोदर घाटी निगम का ही नियंत्रण रहा है. लेकिन इसके अलावा दो अन्य बांध भी हैं जिनका नियंत्रण दामोदर घाटी निगम के पास नहीं है. ये बांध हैं – दुर्गापुर और तेनुघट.
जब झारखंड से पश्चिम बंगाल की तरफ़ पानी छोड़ा गया
भारी बारिश और बाढ़ की वजह से कोलकाता के कई इलाक़ों में पानी भर गया है.
पूर्वी भारत और ख़ास तौर पर झारखंड और पश्चिम बंगाल के इलाक़ों में अगस्त महीने से लेकर अब तक उम्मीद से ज़्यादा बारिश हुई है. इसकी वजह से पश्चिम बंगाल के कई ज़िले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं.
बाढ़ से ज़्यादातर पश्चिम बंगाल के दक्षिणी इलाके़ प्रभावित हैं, जैसे बीरभूम, बर्दवान, बाँकुरा, पश्चिमी मिदनापुर, हुगली और हावड़ा.
इन इलाक़ों में स्थिति तब और ख़राब हो गई जब झारखंड में मौजूद दामोदर घाटी निगम यानी ‘डीवीसी’ के सभी जलाशयों से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया.
डीवीसी का कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इन जलाशयों के टूट जाने का ख़तरा था. डीवीसी भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के अधीन काम करता है.
डीवीसी का कहना है कि ”अनियंत्रित कारकों की वजह से और बांध की सुरक्षा के लिए” 17 सितम्बर को सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक मैथन और पंचेत बांधों से 2.5 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था.
फिर 19 सितम्बर को इसे धीरे-धीरे कम कर दिया गया और पानी की निकासी 80 हज़ार क्यूसेक पर आ गई थी.
निगम ने अपने बयान में कहा है कि पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदानी इलाक़ों और उसके बाद झारखंड के उपरी इलाक़ों में मूसलाधार बारिश हुई थी.
अपने बयान में निगम का कहना है, “दक्षिण बंगाल में ‘अमता चैनल’ और दामोदर नदी के उद्गम क्षेत्र की मुंडेश्वरी नदी उफान पर थीं. यहां की अन्य नदियां जैसे शिलाबती, कांगसबाती और द्वारकेश्वर, जो कि दामोदर नदी से जुड़ी हुई हैं, वो भी उफान पर थी. अंतिम बार मैथन और पंचेत से पानी छोड़ा गया था.”
“पानी छोड़ने की सलाह दामोदर घाटी जलाशय विनियमन समिति (डीवीआरआरसी) की ओर से दी जाती है, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार, झारखंड सरकार, केंद्रीय जल आयोग (सचिव सदस्य) और डीवीसी के प्रतिनिधि हैं.”
ममता ने दो दिन में पीएम को लिखी दूसरी चिट्ठी
रविवार को पश्चिम बंगाल के ऊर्जा सचिव शांतनु बसु ने ‘दामोदर वैली रिजर्वायर रेगुलेशन कमेटी’ यानी ‘डीवीआरआरसी’ से इस्तीफ़ा दे दिया.
साथ ही इस कमेटी में पश्चिम बंगाल के सभी अधिकारी भी अलग हो गए.
दामोदर वैली रिजर्वायर रेगुलेशन कमेटी में बंगाल सरकार, झारखंड सरकार, केंद्रीय जल आयोग और डीवीसी के प्रतिनिधि होते हैं.
इस मामले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा कि उनकी सरकार ‘इस कमेटी से अलग हो रही है.’ ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को दो चिट्ठियां लिखी हैं.
ममता बनर्जी ने अपनी चिठ्ठी में डीवीसी के दावों का खंडन किया और कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारी जो समिति में मौजूद थे, उन्होंने 2.5 लाख क्यूसेक पानी के छोड़े जाने के लिए अपनी सहमति नहीं दी थी.
उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल की सरकार डीवीसी से ‘बार बार आग्रह करती रही’ कि पानी की निकासी को 2.3 लाख क्यूसेक और फिर 2 लाख क्यूसेक पर नियंत्रित करते हुए छोड़ा जाए.
वो कहती हैं, “दुर्भाग्यवश हमारे अनुरोध को नहीं सुना गया. डीवीसी ने फ़ैसला लेने में 7 घंटों से ज़्यादा का समय लगा दिया जिसकी वजह से पश्चिम बंगाल में हालात बेकाबू हो गए.”
उन्होंने आरोप लगाया कि बाधों से पानी छोड़े जाने का फ़ैसला एकतरफ़ा था जो डीवीसी, केंद्रीय जल आयोग और जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने ही लिया था और पश्चिम बंगाल सरकार को इसकी सूचना नहीं दी.
केंद्र सरकार का ममता को जवाब
सोमवार को बाढ़ग्रस्त इलाके में सीएम ममता बनर्जी ने राहत सामग्री वितरित की
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर जल शक्ति मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. साथ की जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी भी लिखी है.
जल शक्ति मंत्रालय का कहना है कि 17 सितम्बर को झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल में भी अप्रत्याशित बारिश हुई थी.
मंत्रालय के बयान में कहा गया, “इस भारी बारिश को देखते हुए शाम 5 बजकर 25 मिनट पर ही ‘चेतावनी’ जारी कर दी गई थी कि 1.5 लाख क्यूसेक से भी ज़्यादा पानी मैथन और पंचेत जलाशयों से छोड़ा जाएगा. जो कुछ भी किया गया वह पश्चिम बंगाल की सरकार को भरोसे में रखकर किया गया था.”
लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने झारखंड सरकार को भी घेरे में लिया और आरोप लगाया कि उसने तेनुघट जलाशय से भी बिना सूचना दिए पानी छोड़ दिया.
इसके विरोध में पश्चिम बंगाल सरकार ने झारखंड से लगी अपनी सीमाओं में वहां से आने वाले ट्रकों के दाख़िल होने पर तीन दिनों तक रोक लगाए रखी, जिसकी वजह से झारखंड सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच ज़ुबानी जंग भी छिड़ गई थी.
ममता बनर्जी ने सोमवार को बाँकुड़ा और बर्दवान जिलों की बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने के बाद दुर्गापुर में अधिकारियों के साथ हालात की समीक्षा की.
इसके बाद पत्रकारों से बात करते हुए वो बोलीं, “अगर वो लोग राजनीतिक रूप से लड़ना चाहते हैं तो लड़ें लेकिन जानबूझकर इस तरह पानी ना छोड़ें.”
Thanku………………………………