बाढ़ प्रभावित इलाकों में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही है.
रंजन देवी नौ माह की गर्भवती हैं. वो ‘काली पन्नी’ की खेप से लदी पिकअप वैन के पीछे दौड़ रही हैं. बाढ़ की वजह से बेघर हो चुके लोगों के लिए प्रशासन अस्थायी छत मुहैया कराने के लिए काली पन्नी (काली प्लास्टिक की सीट) बांटता है.
रंजन देवी बोल नहीं पातीं. थक कर वो सड़क के किनारे खड़ी हो जाती हैं.
काली पन्नी से लदी पिकअप वैन के पीछे नंगे पांव दौड़ते लोग प्रशासन से बेहद ख़फ़ा हैं. निराशा और ग़ुस्से के मिले-जुले भाव से चिल्ला रहे हैं.
रंजन देवी भी ग़ुस्से में अपना मुंह खोलकर चीखना चाहती हैं, लेकिन शब्द उनके गले से नहीं निकलते. रंजन देवी के पति उन्हें छोड़कर कहीं जा चुके हैं.
उन पर अपनी पांच साल की बच्ची और पेट में पल रहे बच्चे की ज़िम्मेदारी है.
उनके पास खड़ी उसकी बच्ची कहती है,”खाने को कुछ नहीं मिल रहा है.”
बिहार के दरभंगा ज़िले के जमालपुर थाने के पास, जहाँ ये काली पन्नियां बँट रही है, उससे तकरीबन दो किलोमीटर की दूरी पर बाढ़ प्रभावित पुनाच गांव की सुनीला देवी की गोद में उनकी 15 दिन की बच्ची का रो-रोकर बुरा हाल है.
सुनीला का घर बाढ़ में डूब गया है. वो बेघर हैं और पन्नी तानकर सड़क किनारे रह रही हैं. नवजात बच्ची कड़ी धूप में परेशान है.
उसके पूरे शरीर में दाने निकल आए हैं. सुनीला कहती हैं, ”भूखी है. हमें खाना ही नहीं मिल रहा है तो बच्ची के लिए छाती में दूध कैसे उतरेगा.”
सरकारी मदद नाकाफ़ी
दरभंगा के जमालपुर थाने के पास जहाँ मुझे रंजन देवी मिली थीं, वहाँ प्रशासन की तरफ़ से काली पन्नी और सूखा चूड़ा (खाने के लिए) बँट रहा है.
चूड़ा और पन्नी पिकअप वैन में लदा हुआ है और लोग इस पर टूट पड़े हैं.
इस सरकारी सहायता को लेने में बच्चे, बुज़ुर्ग, महिलाएं सब एक तरह की होड़ में है. जो जितना ज़्यादा ताक़तवर, वो अपने हिस्से उतनी ही मदद सामग्री लेना चाहता है.
चचरी देवी अपने बच्चों के साथ पन्नी लेने की कोशिश में सफल रही हैं. अपने माथे पर पन्नी उठाए वो आठ साल के लड़के के साथ हैं. उनके बेटे के माथे पर चोट लगी है. चचरी देवी कहती है, ”पुलिस वाले ने इसको धक्का दिया है. उसी में चोट लग गई है.”
चचरी देवी जहाँ पन्नी लेने में सफल रहीं, वहीं कादो देवी पन्नी तक नहीं पहुँच पाईं.
वो कहती हैं, ”सब कुछ मर्द ले ले रहे हैं. लूट ले रहा है सब. औरतों को कुछ नहीं मिल रहा.”
पन्नी और चूड़ा (पोहा) से लदे पिक अप वैन के पीछे दौड़ते लोगों का दृश्य भयावह है.
लोग सड़कों पर परिवार सहित राहत सामग्री के लिए हाथापाई करते दिख जाते हैं. ये लोग बाढ़ से पहले पड़ोसी थे लेकिन अब आपस में ही संघर्ष कर रहे हैं.
बाढ़ के पानी से भीग चुके गेहूँ को सड़क किनारे सूखाते लोग
राहत सामग्री बाँटने वाला पुलिस का एक जवान बीबीसी से कहता है, ”ये लोग मानते ही नहीं हैं. एक आदमी कई-कई बार ले जाता है. ऐसे में कुछ लोगों को मिलता ही नहीं है.”
इस बीच वहाँ मौजूद नौजवान आशीष कुमार बार-बार चिल्ला रहे हैं, ”इस तरह राहत सामग्री बँटने से रुकवा दें, वरना ख़ून ख़राबा होगा.”
जमालपुर थाने के पास मौजूद बाढ़ से प्रभावित किरतपुर ब्लॉक (दरभंगा) के सर्किल ऑफिसर आशुतोष बीबीसी से बातचीत में दावा करते है, ”ज़्यादातर लोगों को राहत सामग्री मिल गई है और लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया है. अभी और भी राहत आ रही है.”
लेकिन बीबीसी से मिले जमालपुर गांव के लोग कहते हैं कि वहाँ अभी हज़ारोंं लोग फँसे हैं.
गाँव के महमूद आलम और विकास कुमार कहते हैं, ”बांध टूटने के बाद तुरंत पानी भर गया. हमारे घर के लोग अब भी छत पर हैं. सरकार की सारी राहत बाहर रहने वाले लोग ही ले ले रहे हैं. यहाँ नाव की अच्छी व्यवस्था भी नहीं कि हम लोग आ जा सकें.”
बाढ़ प्रभावित इलाक़े में राहत सामग्री के लिए आपस में उलझ जा रहे हैं लोग
इसी तरह भूबौल गाँव जहाँ कोसी का पश्चिमी तटबंध टूटा, वहाँ काम कर रहे समाजसेवी रोशन बीबीसी से फोन पर कहते हैं, ”लोगों को यहाँ कुछ नहीं मिल रहा है. यहाँ लोगों का घर का घर डूब गया. पक्के मकान तक डूब गए हैं. हम लोग ख़ुद यहां चूड़ा बाँट रहे हैं.”
सरकार से राहत के तौर पर स्टेट हाईवे 17 के गंडौल चौक के पास डॉक्टरों की एक टीम एक पंडाल के नीचे बैठी है.
इसी पंडाल के नीचे सामुदायिक रसोई भी है, जिसमें आलू और प्याज काटा जा रहा है. सामुदायिक रसोई में खाने की व्यवस्था देख रहे रवीन्द्र सिंह बताते हैं, ”रोज़ाना दो बार खाना मिलता है. दिन में एक और रात में नौ बजे. दोनों टाइम दाल, चावल और सब्जी मिलती है. छोटे बच्चों के लिए अभी तक हमारे यहां कोई व्यवस्था नहीं है.”
वहीं मौजूद बाढ़ पीड़ित गोविंद साव कहते है, ”चावल दाल सब्जी ही मिलती है. चार बोरी चावल बनता है उससे इतना आदमी कैसे खाएगा.”
बाढ़ से बदहाल बिहार-
बाढ़ के पानी में एक गाँव
बिहार बाढ़ से बेहाल है. राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक़ बिहार के दरभंगा, सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधुबनी, सारण, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी, शिवहर, सिवान,मधेपुरा और मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले बाढ़ प्रभावित है.
इन 16 ज़िलों की लगभग 10 लाख आबादी बाढ़ प्रभावित है.
भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भारी बारिश के बीच 29 सितंबर को वीरपुर कोसी बैराज पर 6,61,295 क्यूसेक और वाल्मीकिनगर गंडक बैराज पर 5,62,500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था.
राज्य के जल संसाधन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक़, ये अक्टूबर 1968 के बाद से वीरपुर कोसी बैराज पर हुआ सबसे ज्यादा डिस्चार्ज है.
पानी के इस डिस्चार्ज के बाद राज्य के सीतामढ़ी, दरभंगा, पश्चिमी चंपारण और शिवहर ज़िले में कुल सात जगह तटबंध टूटे.
दरभंगा ज़िले के किरतपुर ब्लॉक के भूबौल गांव में कोसी पश्चिमी तटबंध 29 सितंबर की रात दो बजे टूट गया, जिससे लाखों की आबादी प्रभावित हुई है.
तटबंध, किसी नदी की सीमा को बांधने के लिए बनाई गई एक संरचना होती है.
सरकारी अधिकारियों पर फूट रहा ग़ुस्सा
सामुदायिक रसोई वाले पंडाल में ही लोग दवाई लेने के लिए बड़ी तादाद में आए हैं.
लोगों और डॉक्टरों की टीम के बीच में बाँस लगाए गए है. लेकिन ऐसा लगता है कि लोगों के दबाव से बांस जल्द ही टूट जाएगा. बांस बांधने वाले बार-बार लोगों को डाँटकर पीछे कर रहे हैं.
डॉक्टरों की इस टीम को लीड कर रहीं डॉक्टर अंकिता कुमारी कहती हैं, ”हम लोग सुबह 8.40 से ही बैठे हुए हैं. लोग खुजली, सर्दी, खांसी, बुखार की समस्या लेकर आ रहे है. हमारे पास दवाई का अच्छा स्टॉक उपलब्ध है.”
दरभंगा ज़िले के ऐसे ही एक गांव में बाढ़ से प्रभावित लोगों ने स्थानीय सर्किल ऑफिसर अभिषेक आनंद की गाड़ी को घेर रखा है.
हिंसक होते लोगों को समझाने की विफल कोशिश के बाद सर्किल ऑफिसर को वहाँ से वापस निकलना पड़ा.
सर्किल ऑफिसर अभिषेक आनंद कहते हैं, ”बाहरी लोग आकर हंगामा कर रहे थे. हम लोग तो राहत कार्य की व्यवस्था के लिए ही वहाँ पहुँचे थे. लेकिन लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं थे.”
महिलाओं को हो रही है ज़्यादा परेशानी-
सुनीला देवी जैसी महिलाओं के छोटे बच्चे हैं. बाढ़ के बाद खाना और साफ़ पानी की किल्लत से बच्चों की देखभाल में काफ़ी दिक्क़त आ रही है
इस पूरे इलाक़े में कोई भी ऐसा स्कूल नहीं दिखता, जिसे सरकार ने राहत केंद्र के तौर पर तब्दील ना कर दिया हो. बाढ़ प्रभावित इलाक़े में पानी के लिए हाहाकार मचा है.
पीने का साफ़ पानी, शौचालय, लाइट और माहवारी के वक़्त के लिए कोई व्यवस्था नहीं दिखती.
रात के वक़्त अगर आप स्टेट हाईवे 17 से गुजरेंगे तो लोग मोमबत्ती या मोबाइल की लाइट जलाकर घुप्प अंधेरे में बैठे लोग दिख जाएंगे.
महिलाओं के लिए शौच करना तक मुश्किल हो गया है.
अगर किसी महिला/बच्ची के माहवारी या पीरियड शुरू हो जाए तो उसका कोई इंतज़ाम नहीं दिखता.
चिकित्सीय कैंप में भी सैनिटरी पैड जैसी कोई व्यवस्था नहीं दिखती.
ऐसे समय में जब महिलाएं अपने साथ बहुत कम कपड़े ला पाईं हो तो माहवारी का संकट और बड़ा हो गया है. उनके पास पुराने कपड़े इस्तेमाल करने का विकल्प भी नहीं है.
बाढ़ में डूबी बिल्डिंग
20 साल की गुंजन (बदला हुआ नाम) बीबीसी से कहती हैं, ”किसी तरह एडजस्ट करना पड़ता है. कोई उपाय नहीं है, हम लोगों के पास.”
पीने का पानी भी यहाँ एक मुख्य समस्या है. बीबीसी ने इस पूरी रिपोर्ट के दौरान एक ही पानी टैंकर देखा जो राज्य के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री नीरज कुमार बबलू के आने से कुछ देर पहले ही लगा था.
बाढ़ राहत कार्य में अव्यवस्था के मसले पर नीरज कुमार बबलू लोगों को धैर्य रखने की सलाह देते हैं.
वो बीबीसी से कहते है, ”एकाएक बांध टूटा है. इंतज़ाम करने में वक़्त लगेगा. लोगों को शौचालय, पीने का पानी, खाना, दवाई जैसी हर ज़रूरी चीज जल्द उपलब्ध हो जाएगी. लोग छीना-झपटी और अफ़रा-तफ़री नहीं करें.”
बिहार में बाढ़ की त्रासदी-
बिहार के लिए पानी वरदान से ज़्यादा अभिशाप बन जाता है
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोसी, गंगा और गंडक नदियों से बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का एरियल सर्वे एक अक्टूबर को किया था.
उन्होंने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र, जहाँ राहत सामग्री पहुँचाने में मुश्किल हो रही है, वहाँ वायु सेना की मदद से फूड पैकेट्स और राहत सामग्री एयर ड्रॉप करवाने का निर्देश दिया है.
हाल के सालों में गाद एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है.
बाढ़ के वक़्त नदियां बालू और रेत लेकर आती हैं, उन्हें ही गाद कहा जाता है.
नीतीश सरकार भी राष्ट्रीय गाद आयोग बनाने की मांग लंबे समय से करती रही है.
बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में लोग इस तरह रहने को मजबूर
इस साल केंद्रीय बजट में बाढ़ से निपटने और सिंचाई सुविधाओं के लिए 11,500 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है.
दिलचस्प है कि इस प्रावधान में बिहार सरकार की लंबे समय से गाद आयोग बनाने की मांग शामिल नहीं है.
राजधानी पटना में बीती 28 सितंबर को ‘बिहार नदी संवाद’ का आयोजन हुआ था, जिसमें नर्मदा आंदोलन की नेत्री मेधा पाटेकर भी शामिल हुई थीं.
इस नदी संवाद के घोषणापत्र में बिहार में प्रस्तावित सात बैराज परियोजनाओं को वापस लेने और कोसी मेची लिंक परियोजना पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की गई थी.