लेबनान के सबसे ताक़तवर सशस्त्र ग्रुप हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की इसराइली हमले में मौत हो गई.
इसराइल ने शनिवार को दावा किया था कि शुक्रवार की रात को हुए हमले में नसरल्लाह समेत हिज़्बुल्लाह के कई कमांडरों की मौत हुई है.
इसके काफ़ी देर बाद हिज़्बुल्लाह की ओर से इस ख़बर की पुष्टि करता एक बयान आया कि नसरल्लाह की मौत “दक्षिणी हिस्से में विश्वासघाती ज़ायनिस्ट हमले के बाद” हुई.
हिज़्बुल्लाह ने इसराइल के खिलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कही है. इसके आगे हिज़्बुल्लाह ने “प्रतिज्ञा” भी ली है कि “गज़ा, फ़लस्तीन, और लेबनान और उसके दृढ़ और सम्मानीय लोगों की रक्षा” के लिए वो लगातार समर्थन करता रहेगा.
नसरल्लाह की मौत पर कैसी प्रतिक्रियाएं?
इसराइली सेना के प्रवक्ता जनरल हगारी ने नसरल्लाह को इसराइल के सबसे बड़े शत्रुओं में से एक बताया
हिज़्बुल्लाह की ओर से पुष्टि किए जाने के बाद इसराइली डिफ़ेंस फ़ोर्सेस (आईडीएफ़) के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने टेलीविज़न पर एक संदेश जारी कर कहा, “हमारी जंग लेबनान के लोगों से नहीं बल्कि हिज़्बुल्लाह से है.”
उन्होंने नसरल्लाह को इसराइल के ‘सबसे बड़े दुश्मनों में से एक’ बताया.
उन्होंने कहा, “शुक्रवार को बेरुत पर इसराइली वायु सेना की ओर से किए गए सटीक हमले में नसरल्लाह मारे गए.”
हमास ने शोक व्यक्त करते हुए कहा है, “हिज़्बुल्लाह के भाइयों और लेबनान में इस्लामिक रेसिस्टेंस के साथ खड़ा है”.
जबकि इराक़ के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुडानी ने हसन नसरल्लाह की मौत पर तीन दिन के शोक की घोषणा करते हुए कहा कि इसराइल ने ‘अपनी सभी हदें पार कर दी हैं.’
ईरान के विदेश मंत्रालय ने हमले को ‘युद्ध अपराध’ बताते हुए कहा कि इसके लिए इसराइल और अमेरिका दोनों ज़िम्मेदार हैं.
यमन में हूती सरकार ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि इसराइल के ख़िलाफ़ “समर्थन बढ़ेगा और मज़बूत होगा.”
इस बीच शनिवार को ईरानी अधिकारियों ने बताया कि बेरुत हमले में ईरानी इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गॉर्ड्स कोर (आआरजीसी) के डिप्टी कमांडर अब्बासा नीलफोरुशान भी मारे गए हैं.
पिछले कुछ दिनों में हमास, हिज़्बुल्लाह और ईरान के कई वरिष्ठ कमांडरों को इसराइल ने निशाना बनाया है. ताज़ा हमले से पहले लेबनान में हिज़्बुल्लाह के सदस्यों को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर पेजर और वॉकी टॉकी विस्फोट हुए थे जिसमें बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे और दर्जनों मारे गए थे.
लेकिन नसरल्लाह की मौत, हिज़्बुल्लाह और अभी तक संयम दिखा रहे ईरान के लिए बेशक काफ़ी बड़ा झटका है और पहले से ही बारूद के ढेर पर बैठे मध्यपूर्व में इस घटना से हालात के और ख़तरनाक होने की आशंका बढ़ गई है.
पिछले 24 घंटों में हुई घटनाएं मध्यपूर्व के हालात पर क्या असर डालेगी और शीर्ष नेतृत्व के बिना हिज़्बुल्लाह और खुली जंग से बचते रहे ईरान का अगला कदम क्या हो सकता है, इस पर बीबीसी संवाददाताओं और विश्लेषकों की क्या राय है, आइए जानते हैं.
नाज़ुक हालात और अनसुलझे सवाल
हिज़्बुल्लाह ने इसराइल के खिलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कही है.
ह्यूगो बाचेगा, मध्यपूर्व संवाददाता, बेरुत
लेबनान के शक्तिशाली और हिज़्बुल्लाह के लंबे समय से नेता रहे हसन नसरल्लाह की मौत ने मध्यपूर्व को के हालात को एक ख़तरनाक मोड़ पर पहुंचा दिया है.
अमेरिका और ब्रिटेन ने लेबनान के इस शिया ग्रुप को चरमपंथी संगठन घोषित कर रखा है लेकिन इसकी ताक़त एक मीलिशिया से भी अधिक है.
यह एक राजनीतिक दल भी है और लेबनान की संसद में इसके प्रतिनिधि हैं और यह सरकार में भी शामिल है.
लेबनान में इसका अच्छा ख़ासा आधार है और लेबनानी समाज में इसकी गहरी पैठ है.
अभी हमें ये नहीं पता है कि इस घटना पर हिज़्बुल्लाह की क्या प्रतिक्रिया होने वाली है. हमने देखा है कि हिज़्बुल्लाह ताज़ा तनाव के दौरान अपने अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करने से बचता रहा है, जिसमें सटीक निशाने पर मार करने वाली गाइडेड मिसाइलें हैं जो इसराइल के बहुत अंदर तक मार कर सकती हैं.
संकेत ये हैं कि ये गुट इसराइल के साथ कोई बड़ा संघर्ष छेड़ने का इच्छुक नहीं है. वो नहीं चाहता कि उसका ढांचा ध्वस्त हो और उसके प्रमुख नेता मारे जाएं.
लेकिन इसके बावजूद ठीक यही उसके साथ हुआ है, इसलिए कुछ बड़े अनसुलझे सवाल हैं.
इस बात की भी चिंता रही है कि इसराइल और हिज़्बुल्लाह के बीच एक बड़ा संघर्ष, इस इलाक़े में मौजूद अन्य ईरानी समर्थिक ग्रुपों को हिज़्बुल्लाह के साथ जोड़ सकता है.
इस समय मध्य पूर्व में एक बहुत ख़तरनाक़ पल है, जिसके नतीजों के बारे में कुछ सटीक नहीं कहा जा सकता है.
क्या मध्यपूर्व में एक व्यापक जंग छिड़ जाएगी?
पीएम नेतन्याहू पहले ही लेबनान पर ज़मीनी हमले की बात कह चुके हैं
फ़्रैंक गार्डनर, सुरक्षा संवाददाता
ऐसा लगता तो नहीं है लेकिन पिछले 24 घंटे में हुए घटनाक्रम में इसकी संभावनाओं में नाटकीय बदलाव आया है.
यही कारण है कि 12 देशों के समूह ने जंग के तापमान को कम करने और पूरे मध्यपूर्व में जंग भड़कने से रोकने के लिए लेबनान में 21 दिन के संघर्ष विराम के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया.
इनमें इसराइल के सहयोगी और उसके साझीदार शामिल हैं.
लेकिन इसराइल ने स्पष्ट रूप से फैसला ले लिया है. उसने हिज़्बुल्लाह को घुटनों पर ला दिया और अब वो किसी भी क़ीमत पर इसका पूरा फ़ायदा उठाना चाहता है.
अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि ईरान क्या करेगा.
इलाक़े में अपने प्रमुख सहयोगी हिज़्बुल्लाह और उसकी मिसाइलों के प्रतिरोध को तबाह होते देखना ख़तरनाक़ है.
पिछले सप्ताह के दौरान, विभिन्न मिसाइलें, उनके लॉन्चर और जो लोग उन्हें चलाते हैं, उनको भारी नुकसान पहुंचा है.
लेकिन इनमें से अधिकांश ढांचा अभी अछूता है, जिसमें लंबी दूरी की प्रिसीज़न गाइडेड मिसाइल हैं, जिनकी मारक क्षमता इसराइल के तेल अवीव और अन्य शहरों तक है.
हिज़्बुल्लाह और ईरान दोनों जानते हैं कि अगर वे इसराइली शहरों पर इन मिसाइलों से हमला करते हैं तो इसके तुरंत दो नतीजे होंगेः ईरान के ख़िलाफ़ इसराइल करारी जवाबी कार्रवाई करेगा और इस संघर्ष में अमेरिका भी शामिल हो सकता है- जिसके क्रूज़ मिसाइलों से लैस युद्ध पोत तट पर खड़े हैं.
ऐसी भी संभावना है कि इस पूरे संघर्ष में इराक, सीरिया और यमन के ईरान समर्थित मिलिशिया ग्रुप भी शामिल हो जाएं.
हालात को काबू करने के लिए राजनयिक पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन फ़िलहाल इसराइल अपने लोगों के लिए ख़तरा बने हिज़्बुल्लाह को ख़त्म करने पर अड़ा हुआ दिखता है.
ईरान के सर्वोच्च नेता ख़ामेनेई की प्रतिक्रिया
ख़ामेनेई ने अपने बयान में हसन नसरल्लाह का ज़िक्र नहीं किया है.
गोंचेह हबीबियाज़ाद, बीबीसी मॉनीटरिंग
पूरे घटनाक्रम पर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह ख़ामेनेई ने प्रतिक्रिया दी है.
आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित पूरे बयान में उन्होंने कहीं भी नसरल्लाह की मौत का ज़िक्र नहीं किया है.
इस बयान में उन्होंने लेबनान के निहत्थे लोगों की हत्या की निंदा की और कहा कि इससे इसराइल के नेताओं की “कम दूरदर्शिता और मूर्खतापूर्ण नीति” ही साबित होती है.
उन्होंने कहा, “इसराइली अपराधियों को ये ज़रूर जानना चाहिए कि लेबनान में हिज़्बुल्लाह के गढ़ को कोई बड़ा नुकसान पहुंचाने से वे कोसों दूर हैं.”
उन्होंने मुस्लिमों से लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह के साथ खड़ा होने और दमनकारी और हड़पने की नीति अपनाने वाली सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई में उनका समर्थन करें.
ख़ामेनेई ने कहा कि इसराइली “अपराधियों को पता होना चाहिए कि वे लेबनान में हिज़्बुल्लाह के गढ़ों को कोई खास नुकसान पहुंचाने के लिए बहुत छोटे हैं”.
ख़ामेनेई ने कहा,”इस क्षेत्र की सभी रेसिस्टेंस फोर्सेस हिज़्बुल्लाह का समर्थन करती हैं और उसके साथ खड़ी हैं. रेसिस्टेंस फोर्सेस हिज़्बुल्लाह के नेतृत्व में इस क्षेत्र की किस्मत तय करेंगी. “
ख़ामेनेई ने कहा, “लेबनान के लोग वो समय नहीं भूले हैं जब दमनकारी शासन के सैनिक बेरुत की तरफ़ बढ़ रहे थे और हिज़्बुल्लाह ने उन्हें रोका था. इस बार भी हड़पने वाले और दमनकारी दुश्मन को पछतावा होगा.”
हिज़्बुल्लाह के लिए बड़ा झटका?
लेबनान का शिया हथियारबंद ग्रुप हिज़्बुल्लाह को लेकर लोगों की राय बँटी हुई है
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफ़ेसर मुद्दसिर क़मर कहते हैं, “इस्माल हनिया की मौत हमास के लिए जितना बड़ा झटका था, नसरल्लाह का मारा जाना हिज़्बुल्लाह के लिए उससे भी बड़ा झटका है. हानिया तब मारे गए जब वो ग़ज़ा में नहीं थे जबकि नसरल्लाह लेबनान में ही थे.”
हसन नसरल्लाह पिछले कई दशकों से हिज़्बुल्लाह की अगुवाई कर रहे थे और वो इसके सह संस्थापक भी थे.
उनके अनुसार, “यह घटनाक्रम हिज़्बुल्लाह के नेतृत्व और सदस्यों के आत्मविश्वास के लिए एक बहुत बड़ा झटका है. जबकि यह इसराइल के नज़रिए से एक बहुत बड़ी सैन्य क़ामयाबी और रणनीतिक उपलब्धि है.”
इसके अलावा ये भी सवाल खड़ा हो गया है कि उनके बाद ग्रुप का अगला लीडर कौन होगा. ये इसलिए भी अहम सवाल है क्योंकि पिछले कुछ दिनों में हिज़्बुल्लाह के कई वरिष्ठ कमांडर मारे गए हैं और ग्रुप में नेतृत्व शून्यता का भी संकट पैदा हो गया है.
हिज़्बुल्लाह की ओर से नसरल्लाह की मौत की पुष्टि किए जाने के कुछ ही देर बाद एक टेलीविज़न प्रसारण में इसराइली सेना के प्रवक्ता जनरल हगारी ने बयान दिया कि उनका सैन्य अभियान जारी है.
इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने भी साफ़ किया है कि इसराइल हिज़्बुल्लाह के ख़तरे को समाप्त करने के लिए सैन्य कार्रवाई जारी रखेगा.
मुद्दसिर क़मर कहते हैं, “ऐसे में हिज़्बुल्लाह के पास संघर्ष करने के अलावा कोई और चारा नहीं है. यानी, जबतक हवाई बमबारी हो रही है, उन्हें छिपना पड़ेगा लेकिन जब इसराइल ज़मीनी हमला करेगा तो उस समय हिज़्बुल्लाह गुरिल्ला युद्ध में जा सकता है.”
वो कहते हैं, “हिज़्बुल्लाह ने इसराइल से पहले भी इस तरह की लड़ाई की है. और उसके सामने यही दो रास्ते हैं.”
उनका कहना है, “ईरान के लिए भी यह एक बड़ा झटका है क्योंकि हिज़्बुल्लाह उसका प्रॉक्सी था और ईरान ने पिछले 40-50 सालों में इस इलाक़े में मौजूद इसराइल विरोधी ग्रुपों को मिलाकर एक ‘एक्सिस ऑफ़ रज़िस्टेंस’ का नैरेटिव खड़ा किया था. अभी इसराइल इसी नेटवर्क पर हमला कर रहा है.”
“ईरान और हिज़्बुल्लाह अभी कोई कड़ी प्रतिक्रिया देंगे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि वे जानते हैं कि सैन्य ताक़त के रूप में इसराइल बहुत मज़बूत है. और अगर वे सीधे जंग का एलान करते हैं तो इसराइल को अमेरिका का साथ है, इसके अलावा पश्चिमी देश भी उसके साथ खड़े हैं और हथियारों की सप्लाई करेंगे.”
उनके अनुसार, “अधिक संभावना है कि वे हालात को नियंत्रित करने की कोशिश करेंगे और मौका आने पर कोई कार्रवाई करेंगे. लेकिन मिसाइल, रॉकेट और ड्रोन हमले प्रतीकात्मक रूप से चलते रहेंगे.”
अमेरिका और इसराइल के रिश्ते
अमेरिका राष्ट्रपति बाइडन इसराइल से लगातार संयमित होने की अपील करते रहे हैं.
मध्यपूर्व में इसराइल को अमेरिका का पूरा समर्थन हासिल है.
लेकिन मुद्दसिर क़मर का कहना है कि इसराइल अमेरिका का प्रॉक्सी नहीं है बल्कि दोनों के रिश्ते बराबरी के हैं.
वो कहते हैं, “अपनी सैन्य कार्रवाई में इसराइल अमेरिका या किसी अन्य देश की नहीं सुन रहा है. और अमेरिका के लिए ये संभव नहीं है कि वो इसराइल को रोक सके.”
उनके मुताबिक, “हालांकि इसराइल को अमेरिका की ओर से जो फ़ंड और हथियारों की आपूर्ति होती है, वो अमेरिका का एक ढांचागत मुद्दा है और वहां की राजनीति का एक अहम हिस्सा है. इसलिए तत्काल रूप से किसी एक राष्ट्रपति के लिए इसमें बदलाव करना कठिन है.”
वो कहते हैं, “नेतन्याहू का राजनीतिक करियर जंग ख़त्म होने का बाद तय होगा.”
“क्योंकि इसके बाद देश में चुनाव होंगे और उस समय ये देखना होगा कि सात अक्टूबर हमास के हमले में इंटेलिजेंस की नाकामी का उन्हें ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है या मौजूदा जंग में इसराइल की सफलताओं का उन्हें फायदा मिलता है.”